Dah Sanskar

घर से घाट तक की सेवा

What We Do

As per Hindu Mythology we require cremation facility that meets our religious belief and needs.
When a death occurs, the family burdened with funeral arrangements and financial costs. Many times the family is so shocked and is at such a loss that it does not even know what the next step should be. We the Last Ritual Service steps in to server. We make arrangements and the family will be able to grieve.
Antyesti (अन्त्येष्टि) literally means “last sacrifice”, and refers to the funeral rites for the dead in Hinduism, which usually involves cremation of the body. This rite of passage is the last samskara in a series of traditional life cycle samskaras that start from conception in Hindu tradition. It is also referred to as Antima Sanskar, Antya-kriya, Anvarohanyya, or as Vahni Sanskara.

 


Burn him not up, nor quite consume him, Agni: let not his body or his skin be scattered,
O all possessing Fire, when thou hast matured him, then sends him on his way onto the Fathers.
When thou hast made him ready, all possessing Fire, then do thou give him over to the Fathers,
When he attains unto the life that waits him, he shall become subject to the will of gods.
The Sun receive thin eye, the Wind thy Prana (life-principle, breathe); go, as thy merit is, to earth or heaven.
Go, if it be thy lot, unto the waters; go, make thine home in plants with all thy members.

— Rigveda 10.16

 

अंत्येष्टि संस्कार क्या होता है और इसका महत्व क्या है?

हिन्दू धर्म में अन्त्येष्टि को अंतिम संस्कार कहा जाता है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत अंतिम संस्कार में होने वाले कर्मकांड को करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। वह सभी मोह माया और बंधनों को त्यागकर पृथ्वी लोक से परलोक की ओर गमन करता है। इसी निमित्त मृत देह का विधिवत संस्कार किया जाता है। अंत्येष्टि का अर्थ होता है अंतिम यज्ञ। यह यज्ञ मरने वाले व्यक्ति के शव के लिए किया जाता है।

बौधायन पितृमेधसूत्र में अंतिम स्ंस्कार के महत्व को बताते हुए ये कहा गया है कि “जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति मृतसंस्कारैणामुं लोकम्।” अर्थात जातकर्म आदि संस्कारों से मनुष्य इह लोक (पृथ्वी लोक) को जीतता है और “अंत्येष्टि संस्कार” से परलोक पर विजय प्राप्त करता है।

एक अन्य श्लोक में कहा गया है कि, “तस्यान्मातरं पितरमाचार्य पत्नीं पुत्रं शि यमन्तेवासिनं पितृव्यं मातुलं सगोत्रमसगोत्रं वा दायमुपयच्छेद्दहनं संस्कारेण संस्कृर्वन्ति।।” जिसका अर्थ है यदि मृत्यु हो जाए तो, माता, पिता, आचार्य, पत्नी, पुत्र, शिष्य, चाचा, मामा, सगोत्र, असगोत्र का दायित्व ग्रहण करना चाहिए और संस्कारपूर्ण मृत शरीर का दाह करना चाहिए।

अत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व इन बातों का रखें ध्यान

अंत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व मृतक परिजनों को कुछ व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। जैसे कि –

सबसे पहले मृतक के लिए नए वस्त्र, मृतक शैय्या, उस पर बिछाने-उढ़ाने के लिए कुश एं वस्त्र आदि।
मृतक शैय्या की सजावट हेतु पुष्प आदि।
पिण्डदान के लिए जौ का आटा, एक पाव एवं जौ, तिल चावल आदि मिलाकर तैयार कर लें। अगर जौ का आंटा न मिले तो गेहूँ के आटे में जौ मिलाकर गूंथ लें।
कई स्थानों पर संस्कार के लिए अग्नि घर से ले जाने का प्रचलन होता है। यदि ऐसा है तो इसकी व्यवस्था करें अन्यथा श्मशान घाट पर अग्नि देने अथवा मंत्रों के साथ माचिस से अग्नि तैयार करने का क्रम बनाया जा सकता है।
पूजन की आरती, थाल, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, माचिस आदि।
हवन सामग्री, चंदन, अगरबत्ती, सूखी तुलसी, आदि।
अगर बरसात का मौसम हो तो आग जलाने के लिए सूखा फूस, पिसी हुई राल या बूरा आदि।
पूर्णाहुति के लिए नारियल के गोले में छेद करके घी डालें।
वसोर्धारा आदि घृत की आहुति के लिए एक लंबे बांस आदि में ऐसा पात्र बांधकर रखें जिससे घी की आहुति दी जा सके।
उपरोक्त चीज़ों को जुटाकर रखें। घर के अंदर मृतक को नहला-धुलाकर, वस्त्र पहनाकर तैयार करने का क्रम तथा बाहर शैय्या तैयर करने एवं आवश्यक सामग्री को एकत्रित करने का क्रम एक साथ शुरु किया जा सकता है। अंदर शव संस्कार कराके, संकल्प, पिण्डदान करके शव बाह लेकर शैय्या पर रखा जाता है और फिर पुष्पांजलि देकर श्मशान यात्रा शुरु की जाती है।

शव संस्कार क्रिया विधि

घर में गोबर का लेप लगाएँ। इसके पश्चात मृतक के शरीर को गंगा जल से नहलाएँ, इस दौरान ‘ॐ आपोहिष्ठा’ मंत्र जपें।

इसके पश्चात मृतक को नए वस्त्र पहनाएं। अब चंदन और फूलों से शव को सज़ाएँ। इस दौरान इस मन्त्र का जप करें। “ॐ यमाय सोमं नुनुत, यामाय जुहुता हविः।

यमं ह यज्ढो गच्छति, अग्निदूतो अरंकृतः।।” …..ऋ १०.१४.१३

इसके बाद अंत्येष्टि संस्कार करने वाला दक्षिण दिशा को मुख करके बैठे। पवित्रि धारण करे फिर हाथ में यश अक्षत, पुष्प, जल, कुछ लेकर संस्कार हेतु संकल्प करे –

“……….नामाऽहं (मृतक का नाम) प्रेतस्य प्रेतत्त्व – निवृत्त्या उत्तम लोक प्राप्त्यर्थं औधर्वदेहिकं करिष्ये।”

शव यात्रा प्रारंभ करने की विधि:

संकल्प के बाद प्रथम विण्डदान करें।
फिर शव उठाकर उसे शैय्या तक लाए।
शव शैय्या को पुष्पादि से सजाकर पहले से ही रख लें।
शव पर पुष्प अर्पित करें और शव यात्रा प्रारंभ करें।


पिण्डदान

अंत्येष्टि संस्कार के साथ पाँच पिण्डदान किए जाते हैं। जीव चेतना शरीर से बंधी नहीं होती इसलिए उसे संतुष्ट करने के लिए शरीरगत संकीर्ण मोह से ऊपर उठना आवश्यक होता है। जीवात्मा की शांति के लिए व्यापक जीवन चेतना को तुष्ट करने के लिए मृतक के हिस्से के साधनों को अर्पित किया जाता है। पिण्डदान इसी परिपाटी का प्रतीक है। पिण्डदान की क्रिया विधि इस प्रकार है :-

सबसे पहले पिण्डदान को दाहिने हाथ में लिया जाए। उस पर पुष्प, कुश, जल, यव, तिलाक्षत डालकर मंत्र बोला जाए। मंत्र समाप्ति पर अंगूठे की ओरे पिण्ड निर्धारित स्थान पर चढ़ाया जाए।

प्रथम पिण्ड घऱ के अंदर शव संस्कार करके संकल्प के बाद किया जाए। पिण्ड को कमर पर रखा जाए। इस दौरान यह मंत्र बोलें –
“……….नामाऽहं (मृतक का नाम)….मृतिस्थाने शवनिमित्तको ब्रह्मदैवतो वा, एष ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम्।”

दूसरा पिण्ड बाहर शव शैय्या पर शव स्थापना के बाद दिया जाए। पिण्ड को वक्ष की संधि पर रखा जाए।
“……….नामाऽहं (मृतक का नाम)….द्वारदेशे, पांथ निमित्तक एष ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम्।”

तीसरा पिण्ड मार्ग पर दिया जाए। पिण्ड को पेट पर रखा जाए।
“……….नामाऽहं (मृतक का नाम)….चत्वरस्थाने खेचा निमित्तको विष्णुदैवतो वा, एष ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम्।”

चौथा पिण्ड श्मशान में दिया जाए। पिण्ड को छाती पर अर्पित करें।
“……….नामाऽहं (मृतक का नाम)….श्मशानस्थाने विश्रान्ति निमित्तको, भूतनाम्ना रुद्रदैवतो वा, एष ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम्।”

पाँचवाँ पिण्ड चितारोहण के बाद किया जाना चाहिए। पिण्ड को सिर रखें।
“……….नामाऽहं (मृतक का नाम)….चितास्थाने वायु निमित्तको यमदैवतो वा, एष ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम्।”

भूमि संस्कार

श्मशान घाट पर पहुँचकर शव उपयुक्त स्थान पर रखें और पिण्ड दें।
इसके साथ ही चिता सजाने के लिए स्थान झाड़-बुहार कर साफ़ करें।
स्थान का इस मन्त्र का जप करते हुए जल से सिंचन करें, गोबर से लीपें और उसे यज्ञ वेदी की तरह स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण बनाएं।
“ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्‌ ।

सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यनत्रिये, दधामि बहस्पतेष्ट्वा, साम्राज्ये नाभिषिंचाम्यसौ।”

कुछ परिजन श्मशान घाट पर पहले से पहुँचकर कार्य संपन्न करके रखें।

चिता को सजाने से पूर्व मंत्रों से उपचार करें और धरती माँ से श्रेष्ठता के संस्कार मांगते रहें।
श्मशान भूमि जो जीवन को नया मोड़ देती है जहाँ सिद्धियाँ निवास करती हैं। उसे प्रणाम करें और पवित्र बनाकर प्रयुक्त करें।
इस कर्मकांड के लिए तैयार भूमि के पास अंत्येष्टि करने वाला व्यक्ति जाए।
अंत्येष्टि करने वाला व्यक्ति भूमि की परिक्रमा हाथ जोड़कर करें तथा उसको नमन करें।
अब जल पात्र लेकर कुशाओं से भूमि का सिंचन करें। और इस दौरान “ॐ कार लेखन हेतु” मन्त्र का उच्चारण करते हुए मध्यमा अंगुली से भूमि पर ॐ लिखें और उसकी पूजा करें।


समिधारोपण (मर्यादाकरण)

यज्ञ-कुंड या वेदी के चारों ओर मेखलाएं बनाई जाती हैं। उसके लिए चार बड़ी बड़ी लकड़ियाँ चारों दिशाओं में स्थापित की जाती हैं। ये लकड़ियाँ चिता के लिए चारों छोरों पर उसकी सीमा बनाने वाली होनी चाहिए। शेष लकड़ियाँ इन चारों के भीतर ही रखी जाती हैं। दाह करने वाला व्यक्ति समिधाओं को स्थापित करता है।

पहली समिधा पूर्व में होती है। यह धन संबंधी होती है।
अर्थात नैतिक रूप से धन का उपार्जन होना चाहिए। क्योंकि जीवन की ज़रुरतों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है।

लेकिन हमें यह भी समझने की ज़रुरत है कि धन ही सबकुछ नहीं होता है। क्योंकि इसके अति मोह में आकर व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य से भटक जाता है।

इसलिए एक लकड़ी पूर्व दिशा में धन की आकांक्षा को सीमित रखने के लिए भी रखें

दूसरी समिधा पश्चिम दिशा में होती है जो कि ब्रह्मचर्य के पालन हेतु रखी जाती है।
यह समिधा व्यक्ति के वासना को नियंत्रित रखती है।

इसी प्रकार तीसरी मर्यादा यश कामना के लिए रखी जाती है और,
चौथी समिधा द्वेष को मर्यादित रखने के लिए की जाती है।


चितारोहण

मर्यादा की समिधाएं पूरी करने के बाद चितारोहण करने का विधान है। चिता एक प्रकार से यज्ञ प्रक्रिया है।
इसके लिए वट, गूलर, ढाक, आम, शमी आदि पवित्र वृक्षों की लकड़िया काम आती हैं।
अगर देवदारूप या चंदन आदि की सुगंधित लकड़ियाँ हो तो और भी अच्छी बात है।
ये सभी सामग्री जमा करने के बाद अब मृत शरीर को इस चिता पर लिटाएं।
इस समय “ॐ अग्ने नय सुपथा राये” मंत्र का उच्चारण करें और मृतक के लिए शुभकामना करें।
चितारोहण के बाद पूर्व निर्धारित मंत्र से पाँचवाँ पिण्ड दिया जाना चाहिए।
यज्ञ आरंभ हेतु अग्नि स्थापना
कुशाओं के पुँज में अंगार या जलते हुए कोयले रखकर उसे जलाएं।
अब इस अग्नि को लेकर चिता की एक परिक्रमा करें और इसके बाद अग्नि को मृतक के मुख के पास ऐसे रखें जिससे की आग चिता में आसानी से लग जाए।
अग्नि स्थापना के लिए “ॐ भूर्भुवः र्धौरिव भूम्ना…” मंत्र का जाप करें।
अग्नि प्रज्वलित हो जाए तो आग में घी की सात बार आहुति दें। इस समय “ॐ इन्द्राय स्वाहा” इत्यादि मंत्र का उच्चारण करें।
इसके बाद सभी लोग सुगन्धित हवन सामग्री से गायत्री मंत्र बोलते हुए सात आहुतियाँ समर्पित करें।
इसके पश्चात शरीर यज्ञ की विशेष आहुति डालें।


सामूहिक प्रार्थना

शरीर यज्ञ के बाद संस्कार में उपस्थित लोगों को शांति का वातावरण बनाए रखना चाहिए और सामूहिक रूप से मरने वाले व्यक्ति के लिए शुभकामना करनी चाहिए। इस दौरान अपने मन ही मन में गायत्री मंत्र का जप भी करना चाहिए।
दाह संस्कार के समय सामूहिक प्रार्थना का अपना ही महत्व होता है। तांत्रिक विद्या को मानने वाले लोग इसे भलिभांति समझते हैं।
सामूहिक प्रार्थना तब तक की जानी चाहिए जब तक कि कपाल क्रिया पूर्ण न हो जाए। कपाल क्रिया तब की जाती है। जब आग खोपड़ी की हड्डियों को पकड़ लेती है।
पूर्णाहुति – कपाल क्रिया
मनुष्य के मस्तिष्क को उसके जीवन का वास्तविक केन्द्र माना गया है। क्योंकि उसमें जैसे ही विचार या भाव होते हैं वह व्यक्ति उसी के अनुरूप चलता है। मस्तिष्क को संकुचित नहीं होना चाहिए। उसके विकास का क्रम सदा बना रहना चाहिए। इसी तथ्य का प्रतिपादन करने के लिए कपाल क्रिया का कर्मकांड किया जाता है।

इसके लिए सबसे पहले अंत्येष्टि करने वाले सच्चन को बांस हाथ में लेकर चिता के शिरो भाग में खड़ा होना चाहिए।
सभी के हाथों में पूर्णाहुति के लिए हवन सामग्री हो।
खोपड़ी की हड्डी का मध्य भाग मुलायम होता है। वह जोड़ सबसे पहले जलकर ख़ुल जाता है। वहाँ बांस की नोक का दबाव बनाकर छेद करें।
अब “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं” बोलते हुए पूर्णाहुति का गोला बांस के सहारे सिर के पास रख दें और सभी लोग हवन सामग्री की आहुति दें।
कपाल क्रिया के बाद चिता शांत होने तक 2-4 लोगों को छोड़कर शेष वापस लौट सकते हैं या फिर स्थानीय परंपरा के अनुसार स्नानादि, जलांजलि, शोक सभा आदि कार्यों को कर सकते हैं।
लेकिन वहाँ से चलने से पहले समापन कार्य को पूरा कर लेना चाहिए।


अस्थि विसर्जन

अंत्येष्टि के पश्चात् अस्थि विसर्जन का कार्य किया जाता है। इसके लिए अंत्येष्टि के अवशेषों को एकत्रित कर, उन्हें पवित्र नदी में विसर्जन करें।
अस्थियाँ चिता शांत होने पर तीसरे दिन उठाने का विधान है।
इसके अलावा अगर जल्दी उठानी हो तो दूध युक्त जल से या केवल जल से सिंचित करके ही अस्थियाँ उठाएँ।
अस्थियाँ उठाते समय “ॐ आ त्वा मनसाऽनार्तेन, वाचा ब्रह्मणा त्रय्या विद्यया, पृथिव्यामक्षिकायामपा रसेन निवपाम्यसौ।।”….का. श्रौ. सू. २५८.६ मन्त्र का उच्चारण करें।
इन अस्थियों को कलश या मटके में एकत्र करके रखें।
फिर इन्हें तीर्थ स्थान नदी, सागर आदि विसर्जित स्थल के निकट रखें।
विसर्जित करने से पहले हाथ में यव, अक्षत, पुष्प लेकर, यम के लिए “ॐ यमग्ने कव्यवाहन, त्वं चिन्मन्यसे रविम्। तन्नो गीर्भिः श्रवाय्यं, देवत्रा पनया युजम्। ॐ यमाय नमः। आवाह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि।।” और पितृ आवाह्न के लिए “ॐ इदं पितृभ्यो नमोऽअस्त्वद्य ये, पूर्वासो यऽ उपरास ऽईयुः। ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता, ये वा नून सुवृजनासु विक्षु। ॐ पितृभ्योनमः। आवाह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि।।”….19 .68 मन्त्र का जप करें और पुष्प अर्पित कर हाथों को जोड़ें और नमस्कार करें।
अब अंजलि में अस्थि कलश या पोटली लेकर प्रवाह में या किनारे खड़े होकर यव, अक्षत और पुष्पों के साथ नीचे लिखा हुआ मंत्र को जपते हुए अस्थियाँ विसर्जित करें।
“ॐ अस्थि कृत्वा समिधं तदष्टापो, असादयन शरीरं ब्रह्म प्राविशत।

ॐ सूर्यं चक्षुर्गच्छतु वामात्मा, द्यां च गच्छ पृथिवीं च धर्मणा। अपो व गच्छ यदि तत्र ते, हितमोषधीषु प्रति तिष्ठा शरीरैः स्वाहा।।”…. अथर्व० 11.10.2 9 ऋ० 10.16.3

इसके बाद हाथ जोड़कर निम्न मंत्र के साथ मृतात्मा का ध्यान करते हुए ये मन्त्र जपें
“ॐ य़े चित्पूर्व ऋतसाता ऋतजाता ऋतावृधः। ऋषीन्तपस्वतो यम तपोजाँ अपि गच्छतात।। ॐ आयुर्विश्वायुः परिपातु त्वा, पूषा त्वा पातु प्रपथे पुरस्तात्। यत्रासते सुकृतो यत्र तऽईयुः, तत्र त्वा देवः सविता दधातु।।” – अथर्व. 18.2.15.55

इसके पश्चात घाट पर ही तर्पण आदि विशेष कर्म संपन्न करें।
तर्पण के बाद तीर्थ स्थान में विद्यमान सत्शक्तियों को नमस्कार करके इस मन्त्र के साथ यह संस्कार संपन्न करें।